चंडीगढ़। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए मान के खिलाफ दर्ज एक मामले में रद्दीकरण रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए पंजाब की एक स्थानीय अदालत द्वारा पारित आदेश को रद्द करने की मांग वाली याचिका पर प्रसिद्ध पंजाबी गायक गुरदास मान को नोटिस जारी किया है। हाईकोर्ट ने हरजिंदर सिंह उर्फ जिंदा और अन्य की ओर से दायर याचिका पर संज्ञान लेते हुए नोटिस जारी किया है।
याचिकाकर्ताओं ने सब-डिवीजनल न्यायिक मजिस्ट्रेट, नकोदर, जालंधर द्वारा पारित 22 फरवरी के आदेश को चुनौती दी है, जिसमें कहा गया है कि मान के खिलाफ याचिकाकर्ताओं की शिकायत को निचली अदालत ने गलत तरीके से खारिज कर दिया है, जिसके पीछे कारण सही नहीं हैं। याचिकाकर्ताओं के वकील, एडवोकेट रमनदीप सिंह गिल ने तर्क दिया कि मान ने एक समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुँचाई है और यह एक वायरल वीडियो से स्पष्ट है, जिसमें मान ने एक बयान दिया था कि लाडी शाह गुरु अमर दास के वंशज थे। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि यह बयान तथ्यात्मक और ऐतिहासिक रूप से गलत था।
मान के खिलाफ 26 अगस्त को धारा 295 ए (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाना) के तहत जालंधर के सिटी पुलिस स्टेशन नकोदर में एफआईआर दर्ज की गई थी। इस मामले में उन्हें हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत मिल गई थी।
याचिकाकर्ताओं ने उच्च न्यायालय को यह भी बताया कि याचिकाकर्ताओं का मामला पुलिस को दी गई वीडियो रिकॉर्डिंग पर आधारित है और ट्रायल कोर्ट के समक्ष रिकॉर्ड पर है। “लेकिन आरोपों और रिकॉर्ड पर रखी गई स्क्रिप्ट की जांच किए बिना पूर्व निर्धारित मन से इसे पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया,” याचिकाकर्ताओं ने इस मामले में पुलिस रिपोर्ट को रद्द करने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को खारिज करने की मांग करते हुए कहा है।
क्या है बयान?
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के जस्टिस संदीप मौदगिल ने याचिका स्वीकार कर ली और सभी प्रतिवादियों को नोटिस जारी कर 13 जून तक जवाब देने को कहा. याचिका में कहा गया है कि गुरदास मान ने लाडी शाह को गुरु अमर दास जी का वंशज बताया और उनकी तुलना गुरुओं से की जिससे सिखों की भावनाएं आहत होती हैं. इसका वीडियो वायरल हुआ तो सिख संगठन भड़क गए।
याचिका में कहा गया था कि ऐसे व्यक्ति या डेरामुखी को सद्गुरु कहना सिख धर्म का अपमान है, जो गुरदास मान ने किया है. उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर भी पोस्ट किया. हालात बिगड़ते देख उन्होंने सोशल मीडिया पर उपरोक्त बयानों पर खेद भी जताया था, जिसे याचिका में संलग्न किया गया है. याचिकाकर्ता का कहना है कि सेशन कोर्ट ने सबूतों को नजरअंदाज किया और उसकी समीक्षा भी नहीं की।