चंडीगढ़ दिनभर
चीन और पाकिस्तान के खिलाफ 1965 और 1966 की जंग में लडऩे वाले सिपाहियों में मैं भी शामिल था। क्योंकि हम जंग के दौरान इमरजेंसी सर्विस के तहत भर्ती हुए थे, इसलिए जंग खत्म होने के बाद हमें आर्मी से रिलीव कर दिया गया। इस जंग में लडऩे वालों को समर सेवा स्टार 1965 स मान दिया गया। लेकिन अभी तक मैं इस स मान की लड़ाई लड़ रहा हूं। इसके लिए प्रधानमंत्री को भी पत्र लिखा है। ये कहना है कैप्टर (रि.) हरभजन सिंह का। उन्होंने बताया कि पाकिस्तान के साथ हालात अच्छे नहीं थे तो उस दौरान इमरजेंसी भर्तियां चल रही थीं। वे पंजाब यूनिवर्सिटी से लॉ ग्रेजुएट हुए थे। वॉर जोन में हो रही भर्ती में वे भी गए और बतौर कैप्टन उन्हें कमीशन मिल गया। 12 जुलाई 1963 को वे ट्रेनिंग पर गए और 26 जनवरी 1964 को बतौर कैप्टन सेना में भर्ती हो गए। इसके बाद चीन और पाकिस्तान के साथ लड़ाई भी लड़ी। वॉर जोन के बारे में कैप्टन ने बताया कि उन्हें रोजाना 20 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था। और खाने के लिए जंगल में जो भी मिल जाए , उसी से पेट भरना पड़ता था। एक दिन वे बंकर में थे तभी वहां बम का गोला आकर गिरा।
वहां मौजूद सभी सैनिकों के दिमाग सुन्न हो गए। ऐसा लगा जैसे मौत को छूकर लौटै। लेकिन सेना पूरे जोश से हर मोर्चे पर लड़ी और पाकिस्तान को परास्त किया। उन्होंने बताया कि वॉर जोन में उनकी सर्विस 23 जुलाई 1964 से 25 मई 1965 और 12 अक्टूबर 1966 से 30 अक्टूबर 1966 के बीच रही। जब जंग खत्म हो गई तो 1 अगस्त 1968 को हमें सेना से रिलीव कर दिया गया। लेकिन आज तक स मान नहीं मिला। हरभजन ने कहा कि इस संबंध में उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है और सभी जरूरी कागजात भी अटैच करके भेजे हैं। हरभजन ने कहा कि उनकी उम्र 83 वर्ष की है और जीवन के अंतिम क्षणों में वे उ मीर करते हैं कि उन्हें वो स मान मिले जिसके लिए वे अपनी जान की परवाह किए बिना सेना में भर्ती हुए और पाकिस्तान के खिलाफ जंग लड़ी।
समर सेवा स्टार सम्मान 1965
यह अवॉर्ड उन सैनिकों और सिविलियंस के लिए था जिन्होंने 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध लड़ा था। इसके तहत कुछ कंडीशन थी। जो भी व्यक्ति इन्हें पूरा करता था, उसे यह स मान दिया जाना था। जिनमें सैनिक, रिजर्व फोर्स, टेरिटोरियल आर्मी और मिलिशिया फोर्सेज शामिल हैं। जिस भी सैनिक ने 5 अगस्त 1965 से 25 जनवरी 1966 के बीच चिह्नित जगहों पर यूनिट में काम किया वे इस स मान के हकदार हैं।