
जीवन चलने का नाम…चलते रहो सुबहो-शाम… यही मेरे जीवन का मंत्र है : रूपेश कुमार बाली
चंडीगढ़ दिनभर
चंडीगढ़ ये हैं रूपेश कुमार बाली! उम्र 52 साल है। अंबाला के रहने वाले हैं, अब जीरकपुर में रहते हैं। कम से कम 100 किलोमीटर साइकिल चलाना ही इन्हें सुकून देता है। एयरफोर्स से रिटायर हो चुके हैं लेकिन जीवन में डिसिप्लीन आज भी कायम है। बिलकुल फौजी वाला, या यूं कहें उससे भी बढ़कर। फिटनेस को लेकर बहुत फिक्रमंद हैं, सदा से। एयरफोर्स में 17 साल रहे जिसमें से 12 साल वहां बॉडीबिल्डिंग की। सार्जेंट के पद से रिटायर हुए। तय कर रखा था कि फिटनेस पर ही काम करना है, इसलिए कोई दूसरी नौकरी नहीं की। इंश्योरेंस एजेंट बन गए ताकि 10-5 की नौकरी की उलझन से दूर रहें। साइकिल तो शुरू से चला रहे हैं। लेकिन पिछले एक साल में उन्होंने ऐसे कई मील के पत्थर तय किए हैं, जिनके आसपास देश में कोई भी नहीं है। पिछले करीब 345 दिनों से वे रोजाना कम से कम 100 किलोमीटर साइकिल चला रहे हैं। सालभर में वे 50 हजार किलोमीटर से ज्यादा साइकिल चला चुके हैं। हाल ही में वे डबल सुपर रेंडोनियर (एसआर) का खिताब हासिल कर चुके हैं। इसको हासिल करने के लिए 200, 300, 400 और 600 किलोमीटर साइकिल चलानी पड़ती है, वो भी तय समय के भीतर। बाली साहब पांच महीने में इस खिताब को दो बार हासिल कर चुके हैं। इस उपलब्धि को हासिल करना उनके लिए कैसा रहा और किस तरह की तैयारी करनी पड़ती है इसके लिए। इन्हीं बातों को जानने के लिए चंडीगढ़ दिनभर पहुंचा उनके घर। पेश है खास बातचीत…

दर्जनों टाइटल जीत चुके हैं: रूपेश बाली
दर्जनों टाइटल जीत चुके हैं। पंजाब में हुए टूर डे 100 में वे 3000 किलोमीटर से ज्यादा साइकिल चलाकर चैंपियन रहे थे। साइकिल फॉर गोल्ड 2023 में 5500 किलोमीटर साइकिल चलाई। इंटरनेशनल ईवेंट में उनका 12वां स्थान था लेकिन देश में वे चैंपियन बने थे। इसमें 11 देशों के 5000 साइकिलिस्ट ने भाग लिया था। कई साइकिल गि ट मिल चुकी हैं। 15 अप्रैल को ही एसआर का दूसरा टाइटल मिला है। इसमें उन्होंने 600 किलोमीटर 40 घंटे में पूरे किए। उन्होंने गुरुग्राम से ग्वालियर और फिर वापस गुरुग्राम तक का सफर तय किया।

10 मई 2022 से शुरू सेंचुरी लगाने का सफर
- कैसे शुरू हुआ आपका साइकिल चलाने का सफर जो निरंतर जारी है?
- करीब छह साल पहले मैंने बेटे को साइकिल गिफ्ट की थी। उसने चलाई नहीं। एक संडे को मैं खुद ही साइकिल लेकर निकल गया और मनसा देवी पहुंच गया। दूसरे संडे को नाडा साहब तक साइकिल चलाई। मुझे काफी अच्छा लगा। कुछ साइकिलिंग क्लबों के साथ जुड़ गया और इस तरह मेरा हर संडे साइकिल चलाना शुरू हो गया। ये रुटीन पांच साल तक रहा। और धीरे-धीरे यह आदत बन गया। अब हालात ये हैं कि बारिश हो या तूफान साइकिल चलाए बिना रहा नहीं जाता।
- रोजाना 100 किलोमीटर साइकिल चलाना कब से शुरू किया?
- मुझे यह किक क्रिकेट से ही मिली। मैं सोचा कि क्रिकेटर के लिए शतक काफी मायने रखता है तो क्यों न मैं साइकिल से भी सेंचुरी लगाऊं । इसके बाद 10 मई 2022 को मैंने पहली सेंचुरी राइड की। उस दिन मैंने 214 किलोमीटर साइकिल चलाई। इसके बाद आज तक ऐसा दिन नहीं गया जिस दिन मैंने सेंचुरी न लगाई हो। अब तक लगातार 345 सेंचुरी राइड हो चुकी हैं मेरी।
- साइकिल चलते हुए कभी हादसे का शिकार हुए हैं?
- सड़क पर जब भी चलते हैं, खतरा तो बना ही रहता है। मैं भी सात बाद हादसों का शिकार हो चुका हूं। पिछली साल मुझे कुछ ज्यादा चोट आई थी। हादसे होने की वजह हाईवे पर टूव्हीलर या साइकिल के लिए कोई लेन नहीं होना सबसे बड़ी वजह है। सरकार को लगता है हाईवे साइकिल के लिए नहीं बने इसलिए उनके लिए कोई मार्क नहीं है। मैं अपील करता हूं अपने ट्रांसपोर्ट मंत्री जी से कि वो साइकिल के लिए भी हाईवे पर कोई मार्किंग करवाएं ताकि हादसों से बचा जा सके।
- क्या दिमाग में कोई रिकॉर्ड बनाने की ठान रखी है?
- जब तक मैंने 50 शतक नहीं लगाए थे दिमाग में यही था कि रिकॉड्र्स में नाम दर्ज करवाना है। मैंने देखा कि लोग थोड़ी-थोड़ी दूरी के लिए टूव्हीलर लेकर चलते हैं। मुझे लगा कि अब लक्ष्य बदलना है और युवाओं को साइकिलिंग समेत फिजिकल वर्क आउट के लिए प्रोत्साहित करना है। तो मैं जहां जाता वहां युवाओं को साइकिलिंग के गुण बताता। मुझे इसका पॉजिटिव रिस्पांस भी मिला। अब तक 100 से ज्यादा लोगों को साइकिलिंग से जोड़ चुका हूं और ये प्रयास निरंतर जारी है। कई स्कूलों में मुझे बच्चों व युवाओं को प्रेरित करने के लिए बुलाया जाता है।
- आप ज्यादातर घर से बाहर ही रहते हैं, घरवालों से कैसा सपोर्ट मिलता है?
- घरवालों के सपोर्ट के बिना कुछ भी संभव नहीं है। यूं ही नहीं कहते कि हर सफल व्यक्ति के पीछे एक महिला होती है। मेरी पत्नी साक्षी बाली ने मेरा बहुत साथ दिया। मैं जब भी साइकिलिंग पर जाता हूं तो वो चिंतित रहती हैं। घर पर बीमार पिताजी हैं जिनकी देखभाल साक्षी और मेरे बच्चे करते हैं। मैं जब भी घर लौटता हूं तो मेरे खाने-पीने का पूरा याल रखती हैं। मेरे पिताजी मेरी इंस्पिरेशन हैं। मेरी हर राइड के बारे में मुझसे पूछते हैं और मुझे हमेशा और बेहतर करने के लिए प्रेरित करते हैं।
- क्या आपका भी कोई गुरु है इस फील्ड में?
- कहावत है कि बिना गुरु ज्ञान नहीं मिलता। मैं 100 किलोमीटर तो चला रहा था लेकिन इसमें भी आप टाइटल जीत सकते हैं और एसआर (सुपर रेंडोनियर) बन सकते हैं मुझे गौतम लाल सर ने बताया। वे, मलिका मैडम व मेघा जैन मैडम ने मुझे इसके लिए काफी प्रेरित किया। यहां तक कि मुझे पल-पल पर फोन कर जानकारी लेते रहते हैं। हर तरह का सपोर्ट दिया। मैं इन तीनों को ही अपना गुरु मानता हूं।