
- पीजीआई, जनरल अस्पताल, जीएमसीएच-32 और सीटीयू के 152 कर्मी शामिल
- एसबीआई की शिकायत के बाद जनरल अस्पताल ने 5 निकाले, सीटीयू ने 20
- एजेंट के जरिए बैंक से जाली कागजातों पर हुआ करोड़ों का लोन पास
शहर के सैकड़ों कच्चे कर्मियों ने खुद को पक्के दिखाकर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की मनीमाजरा और रायपुर कलां शाखा से करोड़ों रुपए का पर्सनल लोन ले लिया। पैसा लेने के बाद से कई लोग तो गायब हो गए हैं और कई ने किस्तें देना ही बंद कर दिया है। जांच में सामने आया है कि एक एजेंट के जरिये सारा खेल हुए है। इस पूरे मामले में शक के घेरे में बैंक कर्मी भी हैं, जिन्होंने बिना जांच के बैंक का खजाना खाली कर दिया। जानकारी के अनुसार जिन कच्चे कर्मियों ने फर्जीवाड़े से पक्के बन यह सारा खेल किया है वो पीजीआई, सेक्टर-16 के सरकारी अस्पताल, सेक्टर -32 के सरकारी अस्पताल और सीटीयू के कर्मी हंै। मंगलवार को मामला खुला तो सेक्टर 16 के सरकारी अस्पताल की डीएचएस सुमन सिंह ने मामला पुलिस को सौंप कर जांच क्राइम ब्रांच को दे दी है। इस पूरे मामले में अभी तक सिर्फ सेक्टर-16 अस्पताल की एक नर्स, 2 एमटीएस, 20 स्वीपर और एक लि ट ऑपरेटर का नाम सामने आया है। डीएचएस सुमन सिंह ने कार्रवाई करते हुए सिक्योरिटी गार्ड नीरज, अल्का मुर्मू, नीतेश और संजय कुमार यादव को नौकरी से भी निकाल दिया है। अब पुलिस पूरे मामले की जांच करेगी। वहीं बताया यह भी गया है कि इससे पहले सीटीयू के करीब 22 कच्चे कर्मियों को भी इस फर्जीवाड़े के कारण ही निकाला गया था। अब फर्जीवाड़ा कने वाले सैकड़ों कच्चे कर्मी न सिर्फ नौकरी से हाथ धो सकते हैं बल्कि उन्हें जेल भी जाना पड़ सकता है।
ऐसे हुआ खुलासा
कुछ समय पहले एसबीआई बैंक में ऑडिट हुआ था। इसमें खुलासा हुआ कि शहर के अस्पताल के जिन कर्मियों को बैंक की रायपुर कलां और मनीमाजरा शाखा ने 4 से 5 लाख का लोन दिया था, उन्होंने दो किस्तें देने के बाद से किस्तें ही नहीं भरीं। बैंक ने इनसे संपर्क करना चाहा तो वह भी नहीं हो सका। इसके बाद पीजीआई, सेक्टर-32 और सेक्टर-16 अस्पताल और सीटीयू से इनका रिकॉर्ड मांगा। कहा कि उनके करीब 152 रेगुलर कर्मी लोन लेने के बाद पैसा अदा नहीं कर रहे। जिसपर उनसे उनका रिकॉर्ड मांगा। अस्पताल प्रशासन ने लिखा कि ये लोग तो उनके रेगुलर कर्मी हैं ही नहीं। फिर अस्पताल प्रशासन ने जांच शुरू की तो सामने आया कि ये सब टेंपरेरी कर्मी है, जो आउटसोर्स ठेकेदार द्वारा लगाए गए हैं।
ये हुआ घपला
सरकारी कर्मी को सरकारी बैंकों से आसानी से पर्सनल लोन मिल जाता है। इसलिए इन कच्चे कर्मियों ने अपने फर्जी आईकार्ड बनवाए। दिखाया कि वे रेगुलरकर्मी हैं। सैलेरी सीधा अकाउंट में आती थी, इसलिए सैलरी स्लिप को लगाया। इसी आधार पर उनको आसानी से बैंक ने लोन दे दिया।
एजेंट ने 40 हजार कमीशन लिया
जांच में कर्मियों ने पुलिस को बयान दिए हैं कि उनको तो एजेंट मिला था, जोकि पर्सनल लोन दिलवाने के 40 हजार रुपए लेता था। सारे कागजात वही बनवाता था और पैसे लोन पास होने के बाद लेता था। वह कहता था कि उसकी बैंक में सेटिंग है। कर्मियों ने कहा कि उन्होंने कोई जाली कागज नहीं बनवाए और न ही उन्हें इसकी जानकारी थी। सब कुछ एजेंट ने ही किया। इसलिए इस मामले में बैंक के ब्रांच मैनेजरों की भूमिका भी शक के दायरे में है। जिन्होंने लोन देने से पहले अस्तपाल प्रशासन से वैरीफाई ही नहीं किया कि कर्मी सही हैं या नहीं।
मामला पुलिस में इसलिए
मामला सामने आने के बाद अब सेक्टर 16 अस्पताल की डीएचएस सुमन सिंह ने जहां कर्मियों को निकालना शुरू कर दिया है। वहीं इस मामले में पुलिस को भी जांच दी गई है। सीधा मामला क्राइमब्रांच की निगरानी में देखा जा रहा है। अस्पताल का मानना है कि इस घपले में अस्पताल के कागजों से छेड़छाड़ हुई है और उनके जाली कार्ड बनाए गए हैं। आगे इस मामले में और भी बड़े खुलासे हो सकते हैं।
क्राइम ब्रांच कर रही जांच
हमें एसीबीआई बैंक से दिसंबर 2022 में लैटर आया था कुछ कर्मियों के बारे में। पूछा गया था कि क्या ये सब अस्पताल के रेगुलर कर्मी हैं। हमने जांच की तो पाया कि इनमें से कोई भी रेगुलर कर्मी नहीं था। बल्कि उन्होंने गलत जानकारियां देकर लोन हासिल किया है। इस घपले में हमारे अस्पताल के कागजातों का गलत इस्तेमाल भी हुआ। इसलिए हमने चंडीगढ़ पुलिस को मामला भेज, आरोपी कर्मियों को निकालना शुरू कर दिया है। घपला गंभीर है, इसलिए जांच क्राइम ब्रांच कर रही है।
-सुमन सिंह, डायरेक्टर हेल्थ सर्विस चंडीगढ़