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19 नवंबर 2019 की सुबह, लाहौर के एयरपोर्ट के टर्मिनल से आईसीयू से लैस एक अत्याधुनिक एयर एंबुलेंस ने एक ख़ास मरीज़ को लेकर उड़ान भरी.जिसमे पाकिस्तान के तीन बार प्रधानमंत्री रहे और पकिस्तान की अदालत में दोषी क़रार दिए गए अपराधी नवाज़ शरीफ़ थे. जब वो लाहौर की कोट लखपत जेल में सात साल की सज़ा काट रहे थे तब उनकी ‘इम्यून सिस्टम डिसार्डर’ की बीमारी का पता चला.
उनको इलाज के लिए देश के बाहर जाने की इजाज़त दी गई. इससे पहले पाकिस्तान की अदालत ने कभी ऐसी छूट नहीं दी थी.
अदालत में नवाज़ शरीफ़ द्वारा हलफ़नामा दिया गया कि चिकित्सीय परीक्षण पूरा हो जाने के चार सप्ताह के भीतर वो देश लौट आएंगे. मगर ये चार सप्ताह का वक़्त चार साल तक भी पूरा नहीं हो पाया.अब उनकी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) ने घोषणा जारी की है कि पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ आख़िर 21 अक्तूबर को देश वापस लौट रहे हैं. नवाज़ शरीफ़ इस बार पकिस्तान आम चुनावों से पहले वापसी कर रहे हैं. इससे पहले वो जुलाई 2018 में अपनी बेटी मरियम नवाज़ शरीफ़ के साथ चुनावों से एक महीना पहले देश लौटे थे. उस वक़्त वो गिरफ़्तार होने वापस आए थे और पाकिस्तान में उतरते ही उनकी गिरफ्तारी कर ली गयी थी.स्थिति इस बार भी वो ऐसी ही होगी, उनको इस बार भी अदालत के सामने आत्मसमर्पण करना होगा. पिछली बार 2019 में ब्रिटेन जाने से पहले उन्होंने अदालत को करार किया था, उन्होंने उसका उल्लंघन किया और वो लंबे समय तक अनुपस्थित रहे. जवाब में अदालत ने उन्हें भगोड़ा घोषित कर दिया था.फिलहाल उनकी पार्टी इसका क़ानूनी विकल्प तलाश रही है उम्मीद है कि वो नवाज़ शरीफ़ के लिए ज़मानत हासिल कर लेगी. ऐसे में नवाज़ को अदालत के सामने आत्मसमर्पण करने से पहले अपने परिवार से मिलने और समर्थकों को संबोधित करने का वक़्त मिल सकता है.हालांकि नवाज़ शरीफ़ के सामने परिस्थितियां साल 2018 जैसी ही हैं. मगर वास्तविकता में बहुत कुछ बदल चुका है. सबसे पहले बात देश की सेना के साथ उनकी पार्टी का रिश्ता बदल गया है. पहले 2018 में उनकी पार्टी और सेना के बीच टकराव था. पाकिस्तान में शुरू से ही सेना को किंगमेकर माना जाता रहा है. उस वक़्त पाकिस्तानी सेना इमरान ख़ान को सत्ता में लाने की कोशिश में थी और नवाज़ की पार्टी का आरोप है साथ में कई राजनीतिक टिप्पणीकार भी ये मानते हैं कि अदालतों की मदद से ये सुनिश्चित किया गया कि नवाज शरीफ को चुनाव ना लड़ने के लिए क़ानूनी रूप से मजबूर किया जाए. लेकिन अब परिस्थितियां उलट चुकी हैं और 9 मई के घटनाक्रमों के बाद इमरान ख़ान और उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ सेना की नाराज़गी का सामना कर रही है. 9 मई को इमरान ख़ान की गिरफ़्तारी के बाद उनके समर्थकों ने कई सैन्य ठिकानों पर हमले किए थे और काफी जगह आगज़नी की भी हुई थी.अल कादिर ट्रस्ट भ्रष्टाचार मामले में इमरान ख़ान को 9 मई को इस्लामाबाद हाई कोर्ट से हिरासत में लिया गया था. 9 मई को पाकिस्तान की सेना का 9/11 कहा जाता है. इस दिन ने पीटीआई और पाकिस्तान की सेना के रिश्तों को भी बदल दिया.
पाकिस्तानी राजनीतिक टिप्पणीकार मुनीब फ़ारूक़ के मुताबिक़ इमरान ख़ान ही 9 मई के घटनाक्रम के लिए ज़िम्मेदार हैं. वो बताते हैं कि ये एक तथ्य है कि इमरान ख़ान सेना प्रमुख के ख़िलाफ़ ही साजिश कर रहे थे. इमरान मौजूदा सेना प्रमुख जनरल सैयद आसिम मुनीर की नियुक्ति को रोकना चाहते थे इसी लिए उनके ख़िलाफ़ साज़िश रची गयी थी.
मुनीब का कहना है “इमरान ख़ान को सेना के भीतर से ही समर्थन हासिल था और पूर्व सेना प्रमुख जनरल बाजवा इस बात से भलीभांति वाक़िफ़ थे. इमरान ख़ान ने पिछले साल नवंबर में लॉन्ग मार्च की घोषणा की थी, यह जनरल आसिम मुनीर की नियुक्ति को प्रभावित करने के लिए किया था. इमरान ने जनरल के क़रीबी अधिकारियों को बदनाम करने के लिए एक सुनियोजित अभियान भी चलाया था. उन्होंने डर्टी हैरी, मीर जाफ़र, मीर सादिक़ जैसे शब्दों का जनरलों के लिए सार्वजनिक रूप से इस्तेमाल भी किया था.इसके बाद सेना का इमरान के प्रति मूड बदल गया. नवाज़ शरीफ़ की पार्टी को लगा कि इमरान और सेना का टकराव उनके लिए मौक़ा है और वो इसका फ़ायदा उठाना चाहते थे.पीएमएल-एन के पंजाब प्रांत के अध्यक्ष राणा सनाउल्लाह पहले ही ये स्वीकार कर चुके हैं कि पार्टी का सेना के साथ रिश्ता और सहजता मायने रखती है.उन्होंने कहा, “पिछली बार जब नवाज़ शरीफ़ को 2018 में पकिस्तान वापस लौटना था, तब उनके समर्थकों को एयरपोर्ट तक आने की इजाजत भी नहीं दी गयी थी. उम्मीद है कि इस बार ऐसा कुछ नहीं होगा.”नवाज़ की अनुपस्थिति में सिर्फ़ सेना और इमरान ख़ान के बीच रिश्ते ही नहीं बिगड़े हैं बल्कि और भी बहुत कुछ हुआ है.

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