
चालाकी : न टोल देना पड़ता है न ही स्टेट टैक्स, चालान का भी कोई डर नहीं
चंडीगढ़ दिनभर
चंडीगढ़। चंडीगढ़ में टैक्सियों का काम ही नहीं है। अगर थोड़ा बहुत कमा लेते थे तो कभी जेब्रा क्रॉसिंग का चालान तो कभी रेड लाइट ज प का। अगर पुलिसवाला रोक ले तो उसकी भी सेवा करनी पड़ती थी। इन सब झंझटों से छुटकारा पाने के लिए अपनी वैन को एंबुलेंस ही बना दिया। इसका फायदा ये हुआ कि गिनी चुनी एंबुलेंस हैं। लोग हाथ जोड़कर गाड़ी बुक करवाते हैं। और एक बार मरीज गाड़ी में बैठ जाए तो रास्ते में कोई झंझट ही नहीं न टोल टैक्स न कोई जाम। इसके बाद मैंने खबर पर काम करना शुरू किया और एसटीए पहुंचा तो और चौंकाने वाली बात सामने आई। वहां जाकर पता चला कि सीएच02एए सीरीज मोटर कैब (टैक्सी) की है। एंबुलेंस की सीरीज ही अलग है। एंबुलेंस सीएच01टीए-टीबी वाली सीरीज में रजिस्टर की जाती हैं। लेकिन शहर में जितनी भी एंबुलेंस चल रही हैं, उनमें 90 फीसदी सीएच02एए सीरीज की हैं। ऐसा नहीं है कि ये फर्जीवाड़ा सिर्फ चंडीगढ़ में किया जा रहा है। हमारे पास पंजाब नंबर की भी कई ऐसी टैक्सियों के नंबर हैं जो एंबुलेंस बनकर दौड़ रही हैं। वहीं कुछ एंबुलेंस तो प्राइवेट नंबर भी चल रही हैं।सबसे बड़ा सवाल तो पुलिस प्रशासन और एसटीए पर उठता है कि उन्होंने क्यों आंखें मूंदी हुई हैं?।

टैक्सी स्टैंड से चल रहा दो नंबरी धंधा
पीजीआई के बाहर बने टैक्सी स्टैंड पर ही इस तरह की ज्यादातर एंबुलेंस खड़ी रहती हैं और वहीं से इनकी बुकिंग होती है। ऐसा तो संभव नहीं कि उन्हें ये पता ही नहीं है कि कौन सी गाड़ी टैक्सी है और कौन सी एंबुलेंस। वे सब जानते हैं लेकिन कमीशनखोरी के लालच में सारा गंदा धंधा चल रहा है। हमारे पास उस गाड़ी का भी नंबर है जो बतौर एंबुलेंस रजिस्टर है। इस दो नंबरी धंधे को स्मार्ट सिटी में दौड़ाने में नीचे से लेकर ऊपर तक सब शामिल लगते हैं तभी इतनी बेबाकी से खुलेआम फर्जी एंबुलेंस दौड़ रही हैं। जिस शहर में छोटे से छोटा ट्रैफिक रूल तोडऩे पर कैमरा चालान काट देता है, उससे इतना बड़ा फर्जीवाड़ा कैसे छिपा रह सकता है।