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पार्क घोटाला-2 : नेबरहुड पार्कों की मेंटेनेंस पर हर महीने खर्च हो रहे लाखों

चंडीगढ़ दिनभर

चंडीगढ़ शहर के नेबरहुड पार्कों की मेंटेनेंस रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशंस और हॉर्टिकल्चर विभाग करता है। इसके लिए युनिसिपल कॉर्पोरेशन की तरफ से इन्हें 4.15 रुपए प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से पैसा दिया जाता है। और ये कितना मेंटेन कर रहे हैं इन पार्कों को आप इन तस्वीरों में साफ देख सकते हैं। नेबरहुड पार्कों को लोगों ने कार पार्किंग बना रखा है। रेलिंग तोड़ रखी हैं। लाखों रुपए खर्च कर लगाए गए झूले और ओपर एयर जिम हैं लेकिन अधिकतर टूटे हुए हैं। बच्चे खेल नहीं सकते क्योंकि जहां तहां बड़े-बड़े पत्थर, मलबा व गंदगी फैली हुई है।
इन पार्कों में घास का नामोनिशान नहीं है। क्या युनिसिपल कॉर्पोरेशन में बैठे बड़े अधिकारियों ने कभी भी किसी पार्क का मुआयना किया है। क्या उन्हें इन पार्कों की वास्तविक स्थिति का पता है। या फिर इन एसोसिएशंस को पैसा ही जारी करने के लिए बैठे हैं। ये तो तय है कि मिलीभगत से सरकारी खजाने को चूना लगाया जा रहा है इन पार्कों की मेंटेनेंस के नाम पर।
नियमों के अनुसार मेंटेनेंस देखने के बाद पैसा जारी होता है लेकिन यहां पार्कों की देखभाल सिर्फ कागजों में हो रही है। लगता है जनता को ही जागना होगा अपने अधिकारों के लिए और इकट्ठा होकर कॉर्पोरेशन से जवाब मांगना होगा। शायद इसके बाद अधिकारियों की आंखों पर बंधी पट्टी खुल जाए। जो पार्क सिटी ब्यूटिफुल की शान हुआ करते थे, अब एक धब्बा बन
चुके हैं।
नेबरहुड पार्क लोगों के घूमने फिरने के लिए बनाए गए थे लेकिन अब इनमें स्थानीय लोग गाडिय़ां खड़ी कर देते हैं। ऐसा किसी एक सेक्टर में नहीं बल्कि शहरभर के पार्कों में यही हालात हैं। स्थानीय लोगों का तर्क है कि सेक्टर में आबादी के हिसाब से पार्किंग छोटी पड़ रही है। स्थानीय पार्षद से पार्किं ग समस्या के बारे में पूछते हैं तो उनका जवाब होता है कि जगह नहीं है। ऐसे में पार्कों में ही गाड़ी खड़ी कर देते हैं क्योंकि वैसे भी नगर निगम इनकी देखभाल तो करता नहीं। न तो इनमें बच्चे खेलते हैं और न ही कोई सैर करता है। कम से कम हमारी गाडिय़ां तो खड़ी हो ही जाती हैं। यहां सवाल ये उठता है कि जब इनकी देखभाल ही नहीं होती तो हर महीने जारी होने वाला पैसा किसकी जेब में जाता है।

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आरडब्ल्यूए पर मेहरबान निगम अधिकारी
रेजीडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन (आरडब्लयूए) को अधिकतर नेबरहुड पार्क मेंटेनेंस के लिए दिए हुए हैं। एग्रीमेंट की नियम व शर्तों के मुताबिक आरडब्लयूए को जिन पार्कों की मेंटेनेस का काम दिया जाता है, उन पार्कों के बाहर उन्हें एक बोर्ड लगाना अनिवार्य होता है। इस बोर्ड में आरडब्ल्यूए के पदाधिकारियों के नाम व फोन नंबर होते हैं। अधिकतर पार्कों में ऐसी कोई जानकारी नहीं है, जिससे पता चल सके कि कौन सा पार्क किस आरडब्ल्यूए के पास है।

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अधिकारियों का विजिट करना अनिवार्य
नियम तो यह भी है कि जिन पार्कों की मेंटेनेस का काम आरडब्लयूए को दिया जाता है, उन पार्कों की मेंटेनेस हो रही है या नहीं, इसके लिए अधिकारियों का विजिट करना जरूरी होता है। ताकि विभाग रिपोर्ट मिलने के बार आरडब्ल्यूए का पैसा जारी कर सके, लेकि ये पैसा बिना विजिट ही जारी किया जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ नेबरहुड पार्कों इतने खस्ताहाल है कि सुविधा के नाम पर गंदगी के सिवाय कुछ भी नहीं है।
झूले और जिम बर्बाद
पब्लिक द्वारा दिए गए टैक्स के पैसों से लाखों रुपए रुपए खर्च कर पार्कों में झूले व ओपन जिम लगाए जा रहे हैं। लेकिन कुछ ही समय बाद जिम और झूले टूटे हुए मिलते हैं। आखिर जिस संस्था को इन पार्कों का जि मा दिया हुआ है, वो कर क्या रही है। अगर चीजों की यूं ही बेकदरी करनी है तो बेहतर है कि इन्हें लगाएं ही नहीं। गौरतलब है कि शहर में 1800 पार्क हैं जिनमें से 818 पार्कों का जि मा आरडब्ल्यूए के पास है। और इनमें से अधिकतर पार्क पूरी तरह बर्बाद हैं।

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