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चंडीगढ़ दिनभर: न्यूनतम समर्थन मूल्य या एमएसपी (MSP) पर प्रदर्शन कर रहे किसानों से उम्मीद लगाए बैठी सरकार को फिर से निराशा हाथ लगी है. केंद्र सरकार ने दलहन फसलों को आधार बनाकर एमएसपी गारंटी का मुद्दा सुलझाने की उम्मीद लगा रखी थी. लेकिन किसानों के सामने केंद्र की एक नहीं चली. किसानों ने सरकार के प्रस्ताव को सीधे खारिज कर दिया है और कहा है कि उन्हें फूल MSP गारंटी से कम कुछ भी मंजूर नहीं है. सरकार के ऑफर को खारिज करते हुए किसानों ने कहा कि इसका फायदा तो उन्हें ही मिलेगा जो क्रॉप डाइवर्सीफिकेशन को अपनाते हैं. सभी किसानों के लिए ऐसा संभव नहीं है. अगर कोई किसान मूंग उपजाता है तो क्या होगा? किसान नेता डल्लेवाल ने कहा कि सरकार 1.75 लाख करोड़ का पॉम ऑयल खरीदती है, उन्होंने दावा किया कि इस रकम में तो सभी 23 फसलों की MSP की गांरटी मिल जाएगी.

संयुक्त किसान मोर्चा, जिसने 2020-21 के किसानों के आंदोलन का नेतृत्व किया था, ने सरकार के प्रस्ताव को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वह एमएसपी के लिए किसानों की मांग को “भटकाना और कमजोर करना” चाहती है. SKM ने कहा कि उस फॉर्मूले से कम कुछ नहीं मानेंगे. जिसकी पैरवी स्वामिनाथन आयोग ने की है. इस फॉर्मूले को ‘सी -2 प्लस 50 प्रतिशत का फॉर्मूला कहा जाता है.

किसान मजदूर मोर्चा का नेतृत्व कर रहे एसकेएम के नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने कहा, “हमारे दो मंचों पर चर्चा के बाद, यह निर्णय लिया गया है कि केंद्र का प्रस्ताव किसानों के हित में नहीं है और हम इस प्रस्ताव को अस्वीकार करते हैं.”

स्वामिनाथन आयोग ने किसानों की उपज का मूल्य तय करने के लिए एक फॉर्मूला निकाला है. जिसमें फसल की लागत, मजदूरी, खाद-बीज का मूल्य, बीमा जैसे कई फैक्टर शामिल हैं. अभी सरकार की ओर से MSP तय करने का काम कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की ओर से किया जाता है. CACP इसके लिए तीन फॉर्मूले का इस्तेमाल करता है. इसे A2, A2+FL और C2 कहा जाता है.

ए2 में किसी खास फसल में लगी किसान की लागत है. मतलब कि बीज, खाद, कीटनाशनक, मजदूरों की मजदूरी, जमीन पर लगने वाला किराया और मशीनरी और फ्यूल की लागत. लेकिन इतना तो किसान का लागत है. इसमें उसका गुजारा कैसे होगा? इसमें तो उसके खुद के मेहनत का मूल्य तो शामिल है ही नहीं.इसलिए इस ए2 लेवल को आगे ले जाया गया और इसमें कृषि कार्य के दौरान किसान स्वयं और उसके परिवार के सदस्यों द्वारा मुफ्त में किए गए काम का मूल्य भी शामिल होता है.इस तरह जो रकम बनती है उसे A2+FL कहते हैं.

किसान इससे संतुष्ट नहीं हैं. किसानों का तर्क है कि इस रकम में उनकी अपनी मेहनत तो शामिल है लेकिन जमीन पर लगने वाला किराया और खेती के लिए मशीनों को खरीदने पर लगने वाला ब्याज नहीं शामिल है. इसलिए इसे आगे बढ़ाया जाए. इसके बाद तय किया गया कि अगर किसान खुद की जमीन पर खेती कर रहा है तो उस जमीन का अनुमानित किराया और खेती के दौरान लगने वाले फिक्स्ड कैपिटल पर दिया जाने वाला ब्याज भी A2 में शामिल किया जाए. इस तरह जो रकम बनती है उसे C2 कहते हैं.

किसानों का तर्क है कि देश में कृषि बाजार की स्थिति अच्छी नहीं होने की वजह से कई बार उनकी लागत भी नहीं निकल पाती है. इसलिए किसानों का फसलों का उचित मूल्य मिल सके इसलिए 18 नवंबर 2004 को केंद्र सरकार ने एक आयोग का गठन क‍िया था. इसे स्वामीनाथन आयोग कहा जाता है.

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