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-मोहाली की सीबीआई कोर्ट के स्पेशल जज राकेश कुमार गुप्ता ने सुनाया फैसला

जतिन सैनी, चंडीगढ़ दिनभर :मोहाली की स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने वर्ष 1993 में एक फल विक्रेता के अपहरण और फर्जी एनकाउंटर कर हत्या करने के जुर्म में पंजाब पुलिस के पूर्व डीआईजी दिलबाग सिंह को 7 साल की कैद की सज़ा और इंस्पेक्टर गुरबचन सिंह को उम्रकैद की सज़ा सुनाई। यह फैसला मोहाली की सीबीआई कोर्ट के स्पेशल जज राकेश कुमार गुप्ता ने सुनाया। कोर्ट द्वारा फैसला सुनाने से पहले उक्त दोनों आरोपियों ने क्वांटम ऑफ सेंटेंस पर कोर्ट ने रहम मांगी कि उन्हें कम से कम सज़ा दी जाए, लेकिन सीबीआई कोर्ट के स्पेशल जज ने कहा कि यह केस रयरेस्ट ऑफ रेयर की श्रेणी में आता है ऐसे में उक्त आरोपियों पर किसी भी प्रकार की दया नहीं की जा सकती।
कोर्ट द्वारा कल किया गया था दोषी करार : सीबीआई कोर्ट ने कल पंजाब के डीआईजी दिलबाग सिंह और इंस्पेक्टर गुरबचन सिंह को दोषी करार दिया था। जानकारी के मुताबिक उक्त दोषियों द्वारा 22 जून 1993 को फल विक्रेता का काम करने वाले गुलशन कुमार का उसके घर से अपहरण कर लिया गया था। इसके बाद उसे एक महीने तक अवैध हिरासत में रखा गया और उसी साल 22 जुलाई को एक फर्जी मुठभेड़ में उसकी मौत हो गई। इस आरोप में नामजद तीन अन्य पुलिस अधिकारी एएसआई अर्जुन सिंह, एएसआई देविंदर सिंह और एसआई बलबीर सिंह की मुकदमे के दौरान मृत्यु हो गई थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 1995 में यह मामला सीबीआई को सौंप दिया गया था।
कोर्ट में सीबीआई द्वारा पेश किए गए 32 गवाह : जानकारी के मुताबिक सीबीआई ने 1999 में चालान पेश किया था । करीब 21 साल बाद 7 फरवरी 2020 को आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए गए थे। वहीं, मुकदमे के दौरान एजेंसी ने 32 गवाह पेश किए थे, जिनमें प्रत्यक्षदर्शी भी शामिल थे। प्रवक्ता ने कहा कि गवाहों ने ठोस सबूत दिए कि दिलबाग सिंह और गुरबचन सिंह ने गुलशन कुमार को उसके घर से अगवा कर अवैध हिरासत में बंदी बनाकर रखा और 22 जुलाई, 1993 को उनकी हत्या कर दी थी।
पुलिस ने कत्ल कर शव का कर दिया था अंतिम संस्कार : बता दें कि नवंबर 1995 में पंजाब पुलिस द्वारा बड़ी संख्या में अज्ञात शवों के अंतिम संस्कार से संबंधित मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुपालन में, सीबीआई ने 28 फरवरी, 1997 को मामला दर्ज किया था। पूछताछ के दौरान, चमन लाल ने बताया कि उसके बेटे गुलशन कुमार को तत्कालीन डीएसपी दिलबाग सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस दल ने अपहरण कर लिया था, उसकी हत्या कर दी गई और 22 जुलाई, 1993 को परिवार को सूचित किए बिना शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया था।

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