डॉ. तरूण प्रसाद

-आईएसएल क्लब पहले हाफ में 0-1 से आगे था, दूसरे हाफ में सिटी क्लब 2-1 से जीता, ग्रुप में टॉप पर टीम

चंडीगढ़। स्टैफोर्ड चैलेंज कप के दूसरे लीग मैच में मिनर्वा एकेडमी के सिस्टर क्लब दिल्ली फुटबॉल क्लब(डीएफसी) ने आईएसएल क्लब बेंगलुरू एफसी का सामना किया। पहले हाफ में सिटी क्लब 0-1 से पीछे था, लेकिन दूसरे हाफ में गोल दागकर टीम ने 2-1 से जीत दर्ज कर ली। डीएफसी ने पिछले गेम में केंकरे एफसी को हराया और इस बार टीम ने तीन चेंज किए। गगनदीप को कैप्टन बैंड दिया गया और नीतीश को गोलपोस्ट में जगह दी गई।
मैच के शुरुआत में टीम डीएफसी फ्रंटफुट पर थी और उन्होंने कई मूव बनाए। ये प्रयास जारी रहे और वे बेंगलुरु एफसी को परेशानी में डालते रहे। वे मौके को भुना नहीं सके और बेंगलुरु ने पहली सफलता हासिल की। नौवें मिनट में उनकी ओर से पहला गोल आया और वे 0-1 की लीड पर आ गए। सिटी क्लब ने बराबरी का गोल तलाशा, लेकिन पहले हाफ का अंत 0-1 स्काेर के साथ हुआ।

दूसरे हाफ में डीएफसी ने गेम को बदला और अटैक को तेज किया। 62वें मिनट में कप्तान आगे और और करनदीप ने गोल दागकर टीम को बराबरी दिला दी। बोर्ड पर स्कोर 1-1 हो गया। इस गोल ने टीम को फिर से जोश दिलाया और टीम डीएफसी दूसरे गोल की तलाश लगातार करती रही। बेंगलुरू एफसी को उन्होंने बैकफुट पर रखा। मैच बराबरी के साथ खत्म होने के करीब था और तभी डीएफसी ने निर्णायक गोल भी कर दिया। ये गाेल 95वें मिनट में आया और फहाद ने शानदार तरीके से बॉल को गोलपोस्ट में पहुंचाया। इसका जवाब बेंगलुरु एफसी के पास नहीं था और डीएफसी ने 2-1 के साथ जीत दर्ज कर ली। इसके साथ, दिल्ली एफसी ने स्टैफोर्ड कप 2023 में दो में से दो जीत दर्ज की। पहले मैच में टीम ने आईलीग क्लब केंकरे एफसी को हराया था। डीएफसी को स्टैफोर्ड चैलेंज कप 2023 में भाग लेने के लिए देश की अन्य टीमों के साथ आमंत्रित किया गया था। ये भारत के सबसे पुराने(और दक्षिण भारत के सबसे पुराने) टूर्नामेंट में से एक है। इसे स्टैफोर्डशायर रेजिमेंट ने ऑल इंडिया लेवल पर सिल्वर कप के रूप में शुरू किया था। यह एक नॉक-आउट टूर्नामेंट था और इसका नाम रेजिमेंट के नाम पर रखा गया। इसे अभी भी स्टैफोर्ड चैलेंज कप के नाम से खेला जाता है। यह पहली बार 1938 में आयोजित किया गया, जब विल्टशायर रेजिमेंट ने इसे जीता और अगले वर्ष भी इस उपलब्धि को दोहराया। 1941 में, बेंगलुरू मुस्लिम ने इसे जीतकर ब्रिटिश रेजिमेंटल टीमों के प्रभुत्व को समाप्त किया, जबकि बैंगलोर स्पोर्टिंग ने 1942 में इसे जीत लिया। 1943 में बड़ा उलटफेर हुआ और मैसूर रोवर्स इसमें चैम्पियन बनकर सामने आया।

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