पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: किरायेदार को संपत्ति खाली करने का आदेश चुनौती नहीं दे सकता
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया, जब मकान मालिक की आवश्यकता साबित हो चुकी हो, तब किरायेदार की कोई कानूनी आपत्ति नहीं
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि मकान मालिक की वास्तविक आवश्यकता पर किरायेदार को संपत्ति खाली करने के आदेश पर आपत्ति करने का कोई अधिकार नहीं है।
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि किरायेदार को संपत्ति खाली करने के मकान मालिक के आदेश पर आपत्ति करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है, खासकर जब मकान मालिक की संपत्ति की वास्तविक आवश्यकता साबित हो चुकी हो। यह फैसला लुधियाना के दो किरायेदारों द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनाया गया, जिसमें किरायेदारों ने बेदखली के आदेश को चुनौती दी थी।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि उन्हें वर्ष 1995 से पहले 700 रुपये मासिक किराये पर दो दुकानें किराये पर दी गई थीं। उन्होंने तर्क दिया कि इतने लंबे समय से वे वहां व्यवसाय चला रहे हैं, इसलिए उन्हें बेदखल करना अनुचित है। हालांकि, मकान मालकिन ने वर्ष 2010 में इन किरायेदारों को संपत्ति खाली कराने की मांग की थी।
मकान मालकिन ने कई आधार दिए थे, जिनमें प्रमुख कारण थे, किराये का समय पर भुगतान न होना, परिसर का निवास के लिए अनुपयुक्त और असुरक्षित हो जाना तथा दुकानों के उपयोग में परिवर्तन किया जाना। इसके अलावा, मकान मालकिन ने अपनी और अपने परिवार की वास्तविक आवश्यकता का हवाला देते हुए संपत्ति पर कब्जा पुनः प्राप्त करने की मांग की थी।
किराया नियंत्रक और अपीलीय प्राधिकारी ने सुनवाई के बाद केवल मकान मालकिन की वास्तविक आवश्यकता के आधार पर किरायेदारों को बेदखल करने की अनुमति दी। हालांकि, किरायेदारों ने इस आदेश के खिलाफ अपील की, लेकिन अपीलीय प्राधिकारी ने भी उनके तर्कों को खारिज कर दिया और उनकी अपील असफल रही।
किरायेदारों ने इस फैसले को पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दी। उन्होंने यह तर्क दिया कि मकान मालकिन की बेदखली की मांग अनुचित है और उनकी वास्तविक आवश्यकता का कोई ठोस आधार नहीं है। हाईकोर्ट ने सभी पक्षों के तर्कों का मूल्यांकन करते हुए कहा कि किसी संपत्ति के मालिक को अपनी संपत्ति की वास्तविक आवश्यकता होने पर उसे खाली कराने का पूरा अधिकार है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किरायेदारों को मकान मालिक की जरूरतों को समझते हुए संपत्ति खाली करनी चाहिए, क्योंकि यह कानूनन उनका अधिकार नहीं है कि वे मालिक की जरूरतों पर सवाल उठाएं।
इस निर्णय से यह स्पष्ट हो गया है कि जब भी मकान मालिक को अपनी संपत्ति की वास्तविक आवश्यकता होती है और वह कानूनी रूप से उचित मांग करता है, तो किरायेदार उसे चुनौती नहीं दे सकता। मकान मालिक की संपत्ति पर उसका अधिकार सर्वोपरि होता है, और अगर उसकी जरूरतें जायज हैं, तो कानून उसके पक्ष में फैसला सुनाएगा।